An Unbiased View of baglamukhi shabar mantra



To execute Baglamukhi Shabar Mantra Sadhana, a single requirements to prepare them selves mentally and physically. The practitioner ought to follow a particular treatment that entails the chanting of mantras and performing several rituals.

नानाभरण-भूषाढ्यां, स्मरेऽहं बगला-मुखीम्।।

Consequently, thinking about the defects of your son, the father will not give this exceptional knowledge towards the son, which can be confidential, absolute and specific. Within the very beginning the topic of initiation is so mysterious.

बगलामुखी माला मंत्र के पाठ से बड़ी से बड़ी विपत्ति दूर हो जाती है। भयंकर से भयंकर गृह दोष भी इसके पाठ से दूर होता है। जिन लोगो की कुंडली में पितृ दोष, कालसर्प दोष अथवा अन्य कोई दोष है जिसकी वजह से आपके जीवन में कष्ट हैं तो आप बगलामुखी माला मंत्र का पाठ प्राण प्रतिष्टित हल्दी माला से करके अपने जीवन को कष्टों से मुक्त कर सकते हैं

तंत्र की सबसे बड़ी देवी हैं मां बगलामुखी, कठिन समय में देती हैं संबल, पढ़ें पूजा की सावधानियां

Bagalamukhi or Valgamukhi is often a Devi who shields her devotee in the enemies, detrimental intentions and Fake illusions. The Bagalamukhi Devi not just delivers safety but will also gives the chance to ruin the outcome of any destructive event.

यदि बगलामुखी साधना बिना गुरु की जाए तो यह आपके लिए थोड़ी कठिन जा सकती है क्योकि साधना काल में बडे ही विचित्र अनुभव होते है। जो आपको आकस्मिक शारीरिक और मानसिक हानी पौहचा सकती है इसलिए माता की साधना को बिना गुरु के न करे और अगर गुरु है तो उनकी अनुमति लेकर ही साधना प्रारभ करे।

Using the graces of goddess Baglamukhi, you are going to sense a wave of good Vitality inside your entire body, allowing for you to definitely effortlessly complete your responsibilities.

क्रोधी शान्तति, दुर्जनः सुजनति, क्षिप्रांनुगः खञ्जति ।।

This mantra should not baglamukhi shabar mantra be made use of as an experiment or on an harmless man or woman, if not, you will have to undergo the results.

बगलामुखी गायत्री मंत्र का जाप करने का सर्वोत्तम

शमशान में अगर प्रयोग करना है तब गुरू मत्रं प्रथम व रकछा मत्रं तथा गूड़सठ विद्या होने पर गूड़सठ क्रम से ही प्रयोग करने पर शत्रू व समस्त शत्रुओं को घोर कष्ट का सामना करना पड़ता है यह प्रयोग शत्रुओं को नष्ट करने वाली प्रक्रिया है यह क्रिया गुरू दिक्षा के पश्चात करें व गुरू क्रम से करने पर ही विशेष फलदायी है साघक को बिना छती पहुँचाये सफल होती है।

अर्थात् साधक गम्भीराकृति, मद से उन्मत्त, तपाए हुए सोने के समान रङ्गवाली, पीताम्बर धारण किए वर्तुलाकार परस्पर मिले हुए पीन स्तनोंवाली, सुवर्ण-कुण्डलों से मण्डित, पीत-शशि-कला-सुशोभित, मस्तका भगवती पीताम्बरा का ध्यान करे, जिनके दाहिने दोनों हाथों में मुद्र्गर और पाश सुशोभित हो रहे हैं तथा वाम करों में वैरि-जिह्ना और वज्र विराज रहे हैं तथा जो पीले रङ्ग के वस्त्राभूषणों से सुशोभित होकर सुवर्ण-सिंहासन में कमलासन पर विराजमान हैं।

हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् । पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

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